Soch Aur Chinta Se Upja Mansik Tanav – दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसी बीमारी के बारे में जो हमारे दिमाग में अपना घर बनाकर दीमक की तरह हमारे जीवन का एक एक हसीन पल हमसे छीन कर हमें मौत के मुँह में धकेलती जा रही है और अगर इस बीमारी से हमारी मौत होती भी है तो ये पता नहीं लगाया जा सकता है के ये प्राकृतिक तरीके होगी या अप्राकृतिक तरीके से होगी और इस दीमक जैसी बीमारी को हम डिप्रेशन (मानसिक तनाव) के नाम से जानते हैं। यह वो बीमारी है जो हमें हो जाने के बाद खुद ये एहसास नहीं हो पाता की हम कब धीरे-धीरे इस बीमारी से ग्रसित हो चुके हैं। कई बार इसका पता किसी तकनीकी उपकरण से टेस्ट करके नहीं लगाया जा सकता लेकिन हाँ अगर खुद के व्यवहार में जरा सा भी परिवर्तन हमें दिखे और वो परिवर्तन हमारे लिए अच्छा न हो और ना ही हमारे परिवार के लिए तो हमें सावधान हो जाना चाहिए और अगर समय के साथ परिवर्तन बढ़ते ही जा रहे हैं जो की हमारे साथ-साथ दूसरों के लिए भी घातक सिद्ध हो सकते हैं तो सावधानी के साथ-साथ अब हमें सतर्क भी हो जाना चाहिए क्योंकि ये बीमारी हमें तो अंदर से दीमक की तरह खा ही रही होती है, अपितु हमारे परिवार की भी खुशियों को नजर लगा देती है।पर दोस्तो सोचने वाली बात ये है कि हमारे जीवन में ऐसी कौन सी समस्याएँ आ जाती है की हम किसी भी समस्या का सामना नहीं कर पाते। क्या समस्या या समस्याएँ हमारे 84 लाख योनियों के जन्म लेने के बाद मिलने वाले मानव स्वरूप के मूल्य से भी अधिक बड़ी हो जाती है, जिसके चलते हम मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं। सोचने वाली बात है ना, जब हम स्कूल में होते हैं तो अगली कक्षा में जाने की चिंता वो भी अच्छे अंको के साथ, फिर स्कूल खत्म होने के बाद कॉलेज जाने की चिंता, कॉलेज मे फिर से अच्छे अंक लाने की चिंता, कॉलेज खत्म होने के बाद नौकरी और पैसे कमाने की चिंता, और फिर अगर ये सब मिल गया तो शादी की चिंता, शादी भी हो गयी तो बच्चों की चिंता, तो चिंताओं का तो तब तक कोई अंत नहीं होगा जब तक कीआप उसे अपने दिमाग में घर बना के रहने की इजाजत नहीं देते। तो अब आप ही सोचिए के हम बचपन से चिंता में जीते आ रहे हैं फिर भी हमने ये सारी चीजें इनती सहजता से पूर्ण कर ली तो ये डिप्रेशन जैसी बीमारी को हम अपने दिमाग में अपनी जिंदगी में घर क्यूँ करने देते हैं। मुझे भी कई बार ऐसा लगता है के जो चीजें मुझे अपनी जिंदगी में चाहिए थीं, वो नहीं मिली और आज भी कई बार यही सब सोच के मन इतना उदास हो जाता है मन मे नकारात्मक विचार आते हैं और फिर किसी भी चीज मे मन नहीं लगता, कोई दूसरी इच्छा मन मे नहीं रह जाती सब अधूरा लगता है।
ऐसा लगता है जीवन मे कुछ बचा ही नहीं। लगता है जो दूसरों के पास है वो मेरे पास क्यों नहीं और बस क्या यही से शुरुवात होती है मेरे मन मे मानसिक तनाव की, लेकिन तब मैं इसे अपने दिमाग में घर देने की जगह इसे बाहर निकाल फेंकने की कोशिश करती हूँ, तब मैं चिंता को ज्यादा तव्व्ज़ो नहीं देती। बस अपनी आँखें मूँद कर तकिये पे सर रख कर इतना ही सोचती हूँ की क्या मेरे इतना सोचने से या इतनी चिंता से चीजें बदल जाएंगी, नहीं बिलकुल नहीं। चीजें तो चिंता से नहीं विश्वास से और कर्म से बदलतीं हैं। चिंता से तो सिर्फ हमारी आदतें बदलती हैं, जो आगे चल कर हमें एक भयानक बीमारी दे जाती हैं, मानसिक तनाव के रूप में, जिससे दुनिया का लगभग हर व्यक्ति जूझ रहा है। अगर आपको इससे दूर रहना है तो चीजों की चिंता उतनी ही कीजिये जितनी की जरूरत है, भगवान ने इस दुनिया में जो सबसे सुंदर रचना की है वो है मनुष्य रूप, जो की अनमोल है। परंतु हमारी छोटी छोटी समस्याओं को हम खुद कई बार इतना बड़ा बना लेते हैं की हमे खुद पता नहीं चलता कि कब हम मानसिक तनाव के शिकार हो चुके हैं। इसलिए भगवान का दिया हुआ इतना सुंदर उपहार हमें जीवन स्वरूप मिला है तो उसका आनंद उठाइए। सुबह की शुरुवात चिड़ियों की चहक से, फूलों की खुशबू से, योग और मेडीटेसन से, अपनी मनपसंद म्यूजिक के साथ, एक कप चाय से कीजिये, अपने अंदर किसी नकारात्मक विचार को इतना हावी न होने दें कि आप फिर से ये भूल जाएं की हमारा जन्म 84 लाख योनियों के बाद इस धरती पर हुआ है। जब भी आपको लगे के मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा है जिस भी समस्या से या तनाव से आप गुजर रहे हैं उसकी वजह से तो एक बार सिर्फ उन लोगों को याद करिएगा जिन्हें बरसात में छत नहीं मिल पाती पानी से बचने के लिए, उस बच्चे से पूछिएगा जिन्हे कभी माँ बाप का प्यार और उनका सहारा नहीं मिला, उस माँ बाप से पूछिएगा जिनके बच्चों ने उन्हे तब छोड़ दिया जब उन्हे सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत थी, उस रिक्शेवाले से या उस मजदूर से पूछिएगा जिन्हें खाने के लिए दो वक्त की रोटी आसानी से नसीब नहीं हो पाती फिर भी ये सब अगले पल ही दिन की शुरुआत कर रोज़मर्रा के कामों मे लग जाते हैं और अपने जीवन को खुश रखने के लिए आगे बढ़ने की हिम्मत कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। क्या कोई भी समस्या हमारे जीवन से बड़ी होती है? नहीं बिलकुल नहीं हमें जीवन में जो मिला है वो हमारे लिए पर्याप्त है। बात बस इतनी सी है कि हम इसे स्वीकारते नहीं और यही बात हमें आगे बढ़ने से रोकने के साथ-साथ हमारे मानसिक तनाव का कारण भी बनने लगती है। तनाव का कोई निश्चित आकर प्रकार नहीं होता ये एक छोटे से बच्चे से लेकर एक बुजुर्ग तक को अपना शिकार बना सकती है। तो जो आपके पास है पर्याप्त है, उसे स्वीकारें कभी किसी मोड़ पर लगे की नहीं अब मुझसे नहीं हो रहा है बस अब यही आखिरी रास्ता है, तो उस रास्ते को अपनाने से पहले एक बार फिर अपने दिमाग के किसी स्वस्थ हिस्से का इस्तेमाल करके इतना जरूर सोचिएगा की क्या ये आखिरी रास्ता जो आपने सोचा है क्या वही सही रास्ता हैं और अगर हाँ तो कितने लोग हैं जो आपके इस रास्ते से सहमत होंगे, चाहे वो आपके घर वाले हों या बाहर वाले और अगर आपको इसका जवाब मिल जाए तो आप खुद इसे परख लेंगे की आपका सोचा हुआ रास्ता सही है या गलत। रास्ता कभी आखिरी नहीं होता, आखिरी तो हमारी सोच होती है जो हमारे मानसिक तनाव से ग्रसित दिमाग से निकल कर आयी हुई होती है। तो अब आप ही सोचिए जब आपका दिमाग बीमारी से ग्रसित है, दिमाग का स्वास्थ्य खराब है तो क्या कोई सोच सही निकल के आएगी, नहीं बिलकुल नहीं और न ही उससे निकला हुआ रास्ता सही होगा। इसलिए तनाव को अपनी जिंदगी में उतनी ही तवज्जो दें जितनी तव्व्जो आप अपने घर के कचरे को डस्ट्बिन में देते हैं और कचरा जरूरत से ज्यादा होने पर उसे फेंक देते हैं। अपने जीवन में बस उन्ही विचारों को जगह दे जो आपको सकारात्मक ऊर्जा और सोच से परिपूर्ण रखें। नकारात्मक सोच को अपने दिमाग से ठीक वैसे ही बाहर रखें जैसे मिट्टी लगी हुई चप्पल को हम घर से बाहर रखते हैं। अगर आप समय-समय पर अपने दिमाग की सफाई करते हैं तो यकीन मानिए ये बीमारी आपको कभी छू भी नहीं पाएगी और सकारत्मक विचारों के साथ कैसे जीना हैं, इसके लिए आपके पास एक नहीं हज़ार रास्ते हो सकते हैं। तो बस अब सोचिए मत आसमान की तरफ उड़ती हुई चिड़िया को देखिये, आसमान में उगते हुए सूरज को देखिये, पौधों को इठलाते हुए देखिये, चींटीयों को अपने भोजन के लिए प्रयास करते हुए देखिये। जब इतनी सारी चीजें रोज अपने समय से बिना तनाव लिए हों सकती हैं तो क्या हम रोज सकारात्मक विचार के साथ दिन की शुरुआत करके तनाव को कचरे की तरह बाहर अपनी ज़िंदगी से बाहर नहीं फेंक सकते? सोचिएगा जरूर ।
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