इटिंग डिसऑर्डर (खाने का विकार) – एक मनोरोग|Eating disorder – a psychiatric disorder in Hindi

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2 इटिंग डिसऑर्डर (खाने का विकार) के प्रकार –

इटिंग डिसऑर्डर (खाने का विकार) – एक मनोरोग (Eating disorder – a psychiatric disorder in Hindi)

दोस्तों आज हम बात करने वाली हैं एक ऐसी बीमारी की जो किसी इंसान को अगर हो जाए तब भी उसे जल्दी पता नहीं चलता की उसे यह बीमारी है और उसे यह स्थिति (Condition) भी सामान्य लगती है । हम बात करने वाले हैं इटिंग डिसऑर्डर (eating disorder) के बारे में , जिसमें इंसान का ध्यान किसी और काम में नहीं लगता है , उसे केवल क्या खाना है, कुछ खा लूँ क्या, खाने में क्या बना है, रास्ते चलते भी खाने को देखना उस पर ध्यान होना और खा ही लेना, यह अवस्था एक प्रकार की मानसिक बीमारी (phycological disease) है, इसमें अगर आप कोई भी काम करने बैठते हैं तो आपका ध्यान केवल खाने की ओर होता है, जैसे अगर आप पढ़ने बैठे हैं आपने खाना खा लिया है फिर भी आपको ऐसा महसूस होने लगता है की कुछ और खा लूँ, कुछ चटपटा खा लूँ , या काम करने बैठते हैं तो भी ध्यान खाने पर जाता है , काम करने में मन नहीं लगता है । इस बीमारी में इंसान को ऐसा लगता है की या तो वो बहुत कम खा रहा है या बिल्कुल भी नहीं खा रहा, जिसकी वजह से उसे मानसिक क्षति तो पहुँचती ही है साथ ही शारीरिक क्षति भी पहुँचती है , उस इंसान का दिमाक काही लग ही नहीं पाता जिसके चले वह कामों में तो पीछे रहता ही साथ ही वजन बढ़ने और अन्य बीमारियों जैसी समस्याएँ भी उसे बुरी तरह घेर लेती है।

इटिंग डिसऑर्डर (खाने का विकार) के प्रकार –

इस विकार को मुख्यतः 3 प्रकारों में विभाजित किया गया है –
1.बुलिमिया नर्वोसा (Bulimia nervosa)
2.एनोरेक्सिया नर्वोसा (Aneroxia nervosa)
3.बिंज इटिंग डिसऑर्डर (बीईडी- BED-Binge eating disorder)
4.मसल डिस्मोर्फिया (Muscles dismorphia)
5.कंपलसिव इटिंग डिसऑर्डर (सीओई ) (Compulsive eating disorder)
6.पिका इटिंग डिसऑर्डर (Pica eating disorder)
7.ड्रंकोरेक्सिया (Drunkorexia)
8.प्रीगोरेक्सिया (Pregorexia)

 

1.बुलिमिया नर्वोसा (Bulimia nervosa)-

यह मनोरोग काफी गंभीर समस्या होती है क्योंकि इस समस्या में व्यक्ति बहुत ही अत्यधिक मतलब सीमित मात्रा से बहुत अधिक खाता है । व्यक्ति की अत्यधिक खाने का यह घटनाचक्र एक समय के बाद नियंत्रण से बाहर हो जाता है और व्यक्ति चाह के भी इसे नियंत्रित नहीं कर पाता है और यह दैनिक जीवन की एक नियमित घटना बन जाती है। कई बार यह समस्या व्यक्ति के दूसरों के सामने शर्मिंदगी का कारण बन सकती है। यह समस्या बिल्कुल ऐसा ही जैसे की कोई व्यक्ति नशा छोड़ना चाह रहा है लेकिन वह अपनी आदत से इतना मजबूर हो जाता है और इतना लाचार महसूस करता है की चाह के भी वह नशा नहीं छोड़ पाता है, बस वैसे ही यह बुलिमिया नर्वोसा में होता है, व्यक्ति अपने आप को संतुलित खान-पान के तैयार करता है अपनी मनःस्थिति को मजबूत करता है पर वह चाह के भी इसे अपना नहीं पाता है।

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2.एनोरेक्सिया नर्वोसा (Aneroxia nervosa)-

एनोरेक्सिया नर्वोसा से ग्रसित व्यक्ति को भूख नहीं लगती है या फिर उन्हें खाना खाने में असमर्थता लगती है , और यह भी हो सकता है वह व्यक्ति और भी रोगों से ग्रसित हो सकता है। व्यक्ति को यह लगने लगता है की उसे भूख नहीं लग रही तो वह मानसिक रूप से परेशान होकर बस अपने वजन के बारे में चिंता करने लगता है और उसके बारे में ही अपनी धारणा बना लेता है, मतलब की इस रोग से ग्रसित व्यक्ति वजन मे कम होता है दुबला-पतला होता है लेकिन उसे यही लगता रहता है की कहीं मेरा वजन ना बढ़ जाए, उसे हमेशा यही डर सताता रहता है की कहीं वजन तो नहीं बढ़ रहा और यह उसकी मानसिक स्थिति को खराब करता है, साथ ही इसका असर उस व्यक्ति के शरीर पर भी पड़ता है। अब इस प्रकार के लोग क्या करते हैं की बस अपना ध्यान और ज्यादा से ज्यादा समय अपने वजन को कम रखने और ना बढ़ने देने पर ही लगा देते हैं, जो की एक समय के बाद काफी तकलीफ देती है।

3.बिंज इटिंग डिसऑर्डर (बीईडी- BED-Binge eating disorder)-

यह एक ऐसी समस्या है जिसमें खाना ही नहीं बल्कि खाने जुड़ी और भी समस्याएँ व्यक्ति को परेशान करती हैं, जैसे कॉलेस्ट्रोल (Cholesterol) का बढ़ना या शरीर में फैट (Fat) का बढ़ना। अब फिर से वही बात आती है की व्यक्ति को खाने की बीमारी भी है मतलब उसे हर वो चीज खानी है जो उसे पसंद है लेकिन वह यह भी सोचता है की इसमें फैट है , इससे मोटापा बढ़ जाएगा लेकिन वह खाने से भी परहेज नहीं करता सकता वह खा भी रहा फिर उसे पचाने के बारे में भी सोच रहा , यह भी सोच रहा की वजन भी खाने से बढ़ रहा लेकिन घूम-फिर के फिर से खा ही रहा तो यह उसकी मानसिक स्थिति को भी खराब करने लगता है, व्यक्ति खाने के बारे में भी सोच रहा और वजन के बारे में भी। यह समस्या लगभग 2 प्रतिशत लोगों के साथ पायी गयी है।

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4.मसल डिस्मोर्फिया (Muscle dysmorphia)-

कई बार मसल डिस्मोर्फिया (Muscle dysmorphia)को बिगोरेक्सिया (Bigorexia) के नाम से भी जाना जाता है। अब बात खाने और वजन बढ़ने की सोचने तक तो ठीक थी, लेकिन अब इस प्रकार में व्यक्ति को यी भी लगने लगता है की खाने के हिसाब से उसका वजन (weight) नहीं है , यह खाने के बावजूद उसके मसल्स (Muscles) छोटे हैं। इसमें व्यक्ति को यह लगने लगता है की उसका वजन बहुत कम है, या वह बहुत पतला है । अब इसमें व्यक्ति को ऐसा लगने लगता है की वह दूसरे से कम है, या उनके शरीर का आकार सही नहीं है, तो वह इसी से परेशान होने लगते हैं और अपना सारा ध्यान अपने शरीर के आकार को सही करने में लगाने लगते हैं, जो एक समय के बाद इंसान को मानसिक रोगी बना देता है।

5.कंपलसिव इटिंग डिसऑर्डर (सीओई ) (Compulsive eating disorder) –

कंपलसिव इटिंग डिसऑर्डर , बिंज इटिंग डिसऑर्डर और एनोरेक्सिया नर्वोसा का ही एक प्रकार है, इसमें व्यक्ति को खाने के लिए बाध्य हो जाता है मतलब की वह चाह के भी खाने को ना नहीं कह पाता, उसे खाना जरूरी ही लगता है । इस प्रकार से ग्रसित व्यक्ति के सामने खाने कोई कोई चीज आते ही खुद का नियंत्रण नहीं होता, वह व्यक्ति इसे खाता ही है। इसमें व्यक्ति को हर काम के पहले खाना खाना या खाने वाली किसी चीज को खाना ज्यादा जरूरी लगता है , यह एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमें व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ खाने के चीज में सोचता रेह जाता और खाने से अपना संतुलन खो देता है जिससे उसका वजन तो बढ़ता ही है, साथ ही और भी बीमारियाँ उसे घेर लेती हैं।

6.पिका इटिंग डिसऑर्डर (Pica eating disorder)-

यह मनोरोग सिर्फ खाने से ही संबन्धित नहीं है , बल्कि यह खाने की ऐसी आदत से संबन्धित है जो इंसान की मानसिक स्थिति को खराब कर देता है, मतलब व्यक्ति को खाने के किसी भी चीज की अभिलाषा या लालच (Craving)होती है अब वह चीज बर्फ (Ice) हो सकती है, या मिट्टी (Soil) खाने की आदत हो सकती है, जैसे आपने देखा होगा कई लोगों को स्लेट में लिखने वाली पेंसिल (Pencil) खाने की आदत होती है, और ना मिले तो उसे इसकी क्रेविंग (Craving) होती है, और उसे बार-बार इसे खाने का ही ध्यान आता है, इससे इंसान केवल एक चीज के बारे में ही सोच पाता है और इसे बार- बार खाने के बारे में सोचता है, और यह एक मानसिक बीमारी बन जाती है।

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7.ड्रंकोरेक्सिया (Drunkorexia)-

जैसा की नाम से ही पता चल रहा है की यह समस्या शराब की लत से जुड़ी है, इसमें इंसान का दिमाक ऐसा हो जाता है की वह खाने पर ध्यान ना देकर पीने के लिए बाध्य हो जाता है लेकिन बिना मोटे हुए या बिना शरीर में फैट (Fat) बढ़ाए वह यह करने लगता लगता है , लेकिन यह एक डाइटिंग की विधि है जो सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका में महिलाओं द्वारा अपने शरीर को मोटा ना होने देने के लिए अपनाया जाता है , जिसकी वजह से महिलाएँ खाने पर ज्यादा ध्यान देना छोड़ के एल्कोहौल के सेवन पर ध्यान देती हैं, जो उन्हें कुपोषण (malnutrition) का शिकार बना देता है और सारे आवश्यक पोषक तत्वों (Nutrients) से वंचित रखता है, जो अन्य बीमारियों का कारण बन सकता है।

8.प्रीगोरेक्सिया (Pregorexia)-

यह स्थिति सामान्यतः गर्भावस्था (Pregnancy)के दौरान देखने को मिलती है, कई महिलाओं में यह डर होता है की कहीं वह इस दौरान मोटी ना हो जाएँ या उनका वजन ना बढ़ जाए, और इसी डर में वह गर्भावस्था (Pregnancy)के दौरान खाने में सावधानी बरतना छोड़ देती हैं और उनकी इस आदत की वजह से उनकी दिनचर्या बादल जाती है , और उन्हें मोटे होने का डर सताने लगता है, और यह बात उनके दिमाक में बैठ जाती है, और उन्हें मानसिक रोगी बनाने लगती है, जिससे उनके शरीर पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है साथ ही होने वाले बच्चे पर भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है।

लक्षण –

खाने के विकारों के अनुसार उनके लक्षण भी देखने को मिलते हैं, हमने अब तक जितने भी प्रकार देखे सभी के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सभी में एक बात आम (Common) है, और वह यह है की व्यक्ति इस विकार में शारीरिक रूप से तो प्रभावित होता ही है लेकिन मानसिक रूप से ज्यादा प्रभावित होता है , और उसके सोचने समझने की क्षमता केवल खाने-पीने, वजन ना बढ़ने देने या वजन कैसे बढ़ेगा या शारीरक बनावट सही है या नहीं बस इसी में निकाल जाती है। और यह तो आप सभी जानते हैं की हम जैसा सोचते हैं वैसा ही करते हैं और वैसा ही हमारे साथ होता है, तो यह सारा खेल केवल दिमाक का है, आपका दिमाक सही तो दुनिया की हर चीज सही हो सकती है, इसलिए अगर आप में इनमें से कोई भी बदलाव नजर आ रहे हैं तो उन्हें पहचानिए लेकिन अपनी सामान्य क्रियाओं को इसका हिस्सा ना बनाएँ। बस यह ध्यान रखें की अपने आप में अगर आपको बार -बार किसी चीज की अभिलाषा या फिर क्रेविंग (Craving) हो रही है , और आप उसे कंट्रोल नहीं कर पा रहें तो उस लक्षण पर एक बार अवश्य ध्यान दें की क्या यह काम सामान्य रूप कर रहे हैं या उससे ज्यादा बार कर रहे हैं, अगर सामान्य से ज्यादा है तो आपको इस पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है।

कारण –

वैसे तो इटिंग डिसऑर्डर के सटीक (Exact) कारणों का अब तक पता नहीं लगाया जा सका है, पर कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें इनका कारण माना गया है जिसमें हैं-

1.न्यूरोट्रांसमीटर के प्रभाव और मानसिक स्वास्थ्य (Effects of neurotransmitters and mental health) –

जैसा की आप सभी जानते हैं की हमारा मस्तिष्क (Brain)और उसमें मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर हमारे शरीर में होने वाली सभी गतिविधियों (Activity) को नियंत्रित (Control)करते हैं,अब चाहे वह खेलना हो, कूदना हो हँसना हो, रोना हो , गाना हो या दुखी होना हो , खाना हो सारी की सारी गतिविधियाँ हमारे मस्तिष्क और उनसे मुक्त (release) होने वाले न्यूरोट्रांसमीटर से संतुलित होती है, जब इन्हीं न्यूरोट्रांसमीटर्स का लेवल मस्तिष्क में बढ़ जाता है या घट जाता है तब हमारी यह सारी गतिविधियाँ भी प्रभावित होती हैं, एक वजह यह भी इटिंग डिसऑर्डर की हो सकती है। और इसकी वजह से यह भी हो सकता है की आपकी मानसिक स्थिति भी खराब हो जाए, तो आप जो सोचेंगे वही करेंगे जैसे कई लोगों को आपने देखा होगा की कई लोगों को तनाव (Tension) में भूख लगती है और उस टाइम ज्यादा खाते हैं और कई लोगों को कोई भी कम करने बैठते हैं तो खाने पर ध्यान जाता है यह सब इसी वजह से होता है। इसलिए न्यूरोट्रांसमीटर्स जैसे केमिकल्स (Chemicals)
भी हमारे लिए इटिंग डिसऑर्डर का कारण बन सकता है ।

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2.जीव विज्ञान और व्यक्ति की आनुवंशिकी (Biology and genetics of the individual) –

कई लोगों की शारीरिक बनावट में भी कई बार ऐसे जींस (Genes) मौजूद होते हैं जो इटिंग डिसऑर्डर के लिए जिम्मेदार होते हैं, यह जींस कई बार न्यूरोट्रांसमीटर्स की गतिविधियों या सक्रियता बढ़ा देते हैं जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी व्यक्ति किसी भी काम को सामान्य रूप से ज्यादा करने लगता है, चाहे अब वो खाना हो, या हँसना हो या उदास होना हो या ज्यादा सोचना हो और यह जींस आनुवंशिकी की वजह से भी किसी व्यक्ति में बनते हैं। कई बार हमारे द्वारा खाया गया खाना भी न्यूरोट्रांसमीटर्स के लेवल को प्रभावित करता है जो की इटिंग डिसऑर्डर का कारण बन सकता है।

तो इन दोनों कारणों को ही अब तक इटिंग डिसऑर्डर के लिए जिम्मेदार माना गया है।

इटिंग डिसऑर्डर के जोखिम (Eating Disorder Risks) –

जिस रोग के कुछ जोखिम हो सकते हैं जैसे –

1.डाइटिंग (Dieting) –

कई बार लोग इस स्थिति में खुद को वजनदार या मोटा मानने लगते हैं , जिसकी वजह से वह खाना कम कर देते हैं, और इसकी वजह से कई बार इनको काफी जोखिम उठाना पड़ता है, साथ ही ऐसे लोगों को कमजोरी या अन्य बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है।साथ ही यह हमारे न्यूरोट्रांसमीटर्स का लेवल भी प्रभावित करता है, क्योंकि हम कितना खा रहे, क्या खा रहें और कब खा रहें हैं, यह भी न्यूरोट्रांसमीटर्स को प्रभावित करता है।

2.मानसिक तनाव (mental stress) –

मानसिक तनाव हमारे न्यूरोट्रांसमीटर्स के लेवल के बढ़ने या कम होने से होता है, और साथ यह तनाव हमारे इटिंग डिसऑर्डर को बढ़ा देता है। इसलिए व्यक्ति को गुस्सा या मानसिक तनाव कम से कम ही करना चाहिए ताकि मस्तिष्क जिस पर इतना भार है हमारे शरीर को सुचारु रूप से चलाने और न्यूरोट्रांसमीटर्स को संतुलित रखने , उसे कोई दिक्कत ना हो। इसलिए अपने शारीरिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखना बहुत ही आवश्यक है।

3.फैमिली हिस्ट्री (Family history) –

जब किसी के किसी व्यक्ति, भाई-बहन या माता-पिता को भी यह इटिंग डिसऑर्डर हो तो यह आगे की पीढ़ी में किसी ना किसी को अवश्य ही होगा ।

इटिंग डिसऑर्डर की कुछ जटिलताएँ (Some Complications of Eating Disorders) –

इटिंग डिसऑर्डर इंसान के लिए कई बार इतना घातक साबित हो सकता है , की उसकी जान भी जा सकती है । जैसे कुछ जटिलताएँ हैं –

1.तनाव ग्रस्त जीवन (Stressful Life)
2.मन में गलत विचार आना (Wrong thoughts come to mind)
3.शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होते जाना (Becoming physically and mentally weak)
4.व्यवहार में आक्रामकता (Aggression in Behavior)
5.शराब का सेवन करना (Consuming Alcohol)
6.वृद्धि और विकास में बढ़ा साथ ही समाज और सामाजिक रिश्तों में प्रभाव पड़ना (Increase in growth and development as well as impact
in society and social relationships)

7.मृत्यु (Death)

इटिंग डिसऑर्डर को समझने और उनसे बचने के लिए अपने शरीर पर , अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना काफी आवश्यक है और अगर आपको यह समझ ना आए तो आप दूसरों की भी सहायता ले सकते हैं।

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