क्या एंटिबायोटिक्स हो रही हैं भारतीयों पर बेअसर |Are antibiotics being ineffective on Indians

क्या एंटिबायोटिक्स हो रही हैं भारतीयों पर बेअसर (Are antibiotics being ineffective on Indians in Hindi)

हम भारतीय ना जाने कितने सालों से आयुर्वेदा के बारे में सुनते आ रहे हैं, कुछ इसे आज भी अपने दैनिक जीवन में अपना रहे हैं तो कुछ लोग आधुनिकता की ओर बढ़ते जा रहे हैं और ऐलोपैथिक दवाइयों (Allopathic medicines) का सेवन कर रहे हैं। पहले के समय में जब थोड़ी बहुत या छोटी-मोटी चोट लग जाती थी तो घर में दादा-दादी या नाना- नानी उस पर हल्दी का पाउडर लगा दिया करते थे अगर थोड़ा बहुत खून निकल आए तो खाने वाला चुना लगा दिया जाता था जिससे खून बहना बंद हो जाता था। लोगों को अगर सर्दी-जुखाम होता तो काढ़े का सेवन कर लेते , पेट दर्द हो या कब्ज हो तो घर की रसोई से सौंफ, इलाइची, जीरे या अजवाइन का उपयोग कर लेते लेकिन अब उसके लिए भी बाजार में अलग से सिरप (Syrup) का चलन हो गया है। लोग घर पर आसानी से ठीक हो जाने वाली चीजों के लिए भी अब दवाई का सहारा लेने लगे हैं। हमने अपने शरीर को आदि बना दिया है इन सब रासायनिक तत्वों का। ऐसा नहीं था की पहले लोगों को बीमारियाँ नहीं होती थी, होती थी पर उस वक्त निर्भरता (dependency) नहीं थी लोगो की दवाइयों पर, लेकिन आज हम एक सर्दी को ठीक करफ़्ने के लिए भी भाप और काढ़े या हल्दी और गुड़ वाले दूध को छोड़कर दवाइयों का सेवन करना ज्यादा आसान समझते हैं।

एंटिबायोटिक्स क्या है (What is Antibiotics in Hindi)-

एंटिबायोटिक्स (Antibiotics)ऐसी दवाइयाँ हैं, जो किसी प्रकार के रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया को रोकती हैं और साथ ही संक्रमित व्यक्ति के संक्रमण को ठीक करने में उपयोगी है।

एंटिबयोटिक्स (Antibiotics) को प्रायः हम दो भागों में विभाजित करते हैं-

1.जीवाणुनाशक (Bactericidal antibiotics)
2.जीवाणुरोधक (Bacteriostatic antibiotics)

1.जीवाणुनाशक (Bactericidal antibiotics)-

यह एंटिबायोटिक्स जीवाणु मतलब बैक्टीरिया को मारने का काम करता है, इसलिए इसे बैक्टीरिओसाइडल (Bactericidal) बोला जाता है।

2.जीवाणुरोधक (Bacteriostatic antibiotics)-

यह एंटिबायोटिक्स बैक्टीरिया की वृद्धि को केवल रोकने का कार्य करते हैं, ना की उन्हें मारने का ।

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अगर हम एंटिबायोटिक्स की कार्यप्रणाली के आधार पर इसे वर्गीकृत करें तो यह लिनेजोलिड, मैक्रोलाइड्स, टेट्रासाइक्लिन , सल्फोनामाइड्स (linezolid, macrolides, tetracyclines, sulphonamides) यह सभी जीवाणुरोधक (Bacteriostatic antibiotics) एंटिबायोटिक्स हैं, जो बैक्टीरिया को रोकने का कार्य करते हैं।

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ग्लाइकोपेप्टाइड, फ्लोरोक्विनोलोन, एमिनोग्लाइकोसाइड्स, β-लैक्टम एंटीबायोटिक्स (glycopeptide, fluoroquinolones, aminoglycosides,
β-lactam antibiotics) यह सभी जीवाणुनाशक (Bactericidal antibiotics) एंटिबायोटिक्स हैं। यह बैक्टीरिया को मारने का काम करते हैं।

एंटिबायोटिक्स का प्रभाव शरीर में कम क्यों हो रहा (Why is the effect of antibiotics decreasing in the body)-

जैसे किसी छोटे बच्चे को उसकी माँ सिर्फ दूध पिलाती है, तो जब वह छः महीने का होता है तो उसे पहली बार अन्न खिलाया जाता है तो वह उस अन्न को उगल देता है, क्योंकि उस बच्चे की कोशिकाएं केवल माँ का दूध पहचानती हैं, ठीक उसी प्रकार एंटिबयोटिक्स जब हमारे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया को नहीं पहचानती तो उसे रोकने या मारने का प्रयास करती, और यह तब की अवस्था है जब हम अत्यधिक बीमार होते हैं और हम एंटिबयोटिक्स का सेवन करते या चिकित्सक द्वारा यह हमें दिया जाता है तो यह हम पर और बैक्टीरिया पर काफी प्रभावी होता है, लेकिन जब हम लगातार हर छोटी-छोटी चीजों जैसे सर्दी, खाँसी या खराश के लिए या मौसमी बुखार के लिए एंटिबायोटिक्स का प्रयोग करने लगते हैं, और हर बार हम यही करते हैं तो एक समय के बाद यह दवाइयाँ हमारे शरीर की कोशिकाओं और बैक्टीरिया की कोशिकाओं को अपना लगने लगती हैं और यह कोशिकाएं इन्हें अपना भोजन समझ कर इन्हें कुछ नहीं करती हैं, और इसकी वजह से एक समय के बाद हमारे शरीर में प्रतिरोध उत्पन्न होने लगता है, जिसकी वजह से एंटिबायोटिक्स हमारी बीमारी पर प्रभावी नहीं होती हैं।

और कई बार जब कम प्रभावी एंटिबायोटिक्स हमें बीमारी में दी जाती है तो उसके प्रभावी ना होने पर चिकित्सक द्वारा उस बीमारी को ठीक करने के लिए हमें उच्च एंटिबायोटिक्स (Higher antibiotics) दी जाती है, जो की हमारे शरीर में कई बार अपना प्रभाव भी नहीं दिखाती हैं और उसके कई साइड इफेक्ट्स (Side effects)भी हमें देखने को मिलते हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अब हमारे शरीर ने एंटिबायोटिक्स को अपना समझ के शरीर में लेना शुरू कर दिया, और उसके लिए हमारे शरीर में प्रतिरोध उत्पन्न हो गया है।

सेल्फ मेडिकेसन (Self-medication) –

कई बार अपनी स्थिति को खराब करने के जिम्मेदार हम खुद होते हैं, थोड़ी सी सर्दी हुई की खुद से दवाइयाँ ले लो, थोड़ा सा बुखार आया तो पैरासेटामॉल (Paracetamol)ले लिया, एंटिबायोटिक्स ले ली, थोड़ा सा दस्त (Loose motion) हुआ तो ओ आर एस (ORS) और ज्यादा पानी, केले और दही की जगह दस्त को रोकने की दवाई ले ली। हम में अब सहनशीलता की कमी होती जा रही है। पहले के लोग यह नहीं करते थे, वह छोटी-मोती बीमारियों के लिए घरेलू उपचार अपनानाते थे , इसलिए कभी जब वह बहुत ज्यादा बीमारी पड़ते थे तो एंटिबायोटिक्स उन पर जल्दी और ज्यादा प्रभावी हुआ करती थी। पुराने जमाने में लोग आयुर्वेद को बीमारी के उपचार में अपनाते थे, जिससे वह बीमारी भी कम पड़ते थे क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत हुआ करती थी। इसलिए बार -बार सेल्फ मेडिकेसन (Self-medication) भी हमारे लिए खतरनाक साबित होता है।

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कोरोना माहमारी के दौरान एंटिबायोटिक्स का अंधाधुंध उपयोग (Indiscriminate use of antibiotics during the corona pandemic)-

आप सबको पता ही होगा की हम बैक्टीरिया को तो उल्लू बना सकते हैं, लेकिन वायरस को बिलकुल भी नहीं, क्योंकि वायरस हमारी सोच से भी बहुत आगे काम करता है, उसे कैसे मानव शरीर पर जीवित रहना है, कब तक रहना है, कैसे उसे आगे जीना है और कैसे उसे हमारी एंटिबायोटिक्स से बचना है यह सब उसे मालूम होता है, उसके पास इतना दिमाक होता है की वह शतरंज की चाल की तरह दाँव फेकने से पहले ही अपनी चाल चाल देता है। कोरोना के दौरान हमारे शरीर में बहुत सी दवाइयों का उपयोग किया गया, ना जाने कौन-कौन सी एंटिबायोटिक्स, कफ सिरप, पेन किलर और ना जाने क्या -क्या कई लोगों ने तो कोरोना ना हो करके पहले से ही आइवरमेक्टिन (Ivermectin) जैसी दवाइयाँ खाना शुरू कर दी थीं, जिसका कोई मतल्बा नहीं था।

आपने बिना बीमारी हुए पहले ही ऐसी दवाई का सेवन कर लिया जिसकी आपको जरूरत नहीं थी, और उसे आपकी कोशिकाओं ने पहचान लिया, जब जब कभी आप सच में बीमार होंगे तो यह दवाई हमारे शरीर को अपना ही लगेगा जिसकी वजह से इसका प्रभाव काम हो जाएगा, यह बिल्कुल ऐसा ही है जब आप किसी से मजाक कर रहे होते हैं देखो शेर आया, शेर आया और जब लोग देखते हैं तो वहाँ कोई नहीं होता , लेकिन ठीक इसके विपरीत आप दोबारा ऐसा मजाक करें लेकिन वो सच भी तो लोग आप पर भरोसा करना बंद कर देते है।

कोरोना का आज भी कोई पुख्ता इलाज नहीं है, और इसकी वजह से हमारे शरीर में अनियमित रूप से दवाइयों का अभ्यास किया गया है, जिसकी वजह से ज्यादा फायदा तो नहीं अपितु नुकसान जरुर हुआ है, क्योंकि हमने पहले ही उच्च एंटिबायोटिक्स (Higher antibiotics) का धड्ड्ल्ले से सेवन कर लिया है, अब अगर कोई नयी महामारी आती तो क्या यह उच्च एंटिबायोटिक्स (Higher antibiotics) हमारे काम आएंगे, सोचने का विषय है, एजीथ्रोमाईसिन (Azithromycin) जो कभी वायरल बुखार (Viral fever) के दौरन दी जाती थी अब वह भी इस बुखार में उपयोगी नहीं रह गयी है, क्योंकि कोरोना के समय गले के खराश जैसे लक्षणों के इलाज के लिए इसका उपयोग किया गया। अब आप ही सोचिए की अब यह वायरल बुखार (Viral fever) में उपयोगी यह दवा उस व्यक्ति पर कितनी प्रभावी होगी जिसने कोरोना में इसका उपयोग दस दिनों तक लगातार किया हो।

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प्रतिरक्षा प्रणाली (Defense system)-

भगवान ने हमें एक ऐसी शक्ति या यूँ कहें एक ऐसी व्यवस्था बना कर दी है, जिससे हम बीमारियों से आसानी से बच सकते हैं, और वो है हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली । अगर हम अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत रखते हैं तो हम छोटी- मोटी बीमारियों से आसानी से बच सकते हैं। इसके लिए हमें हमारे शरीर के हिसाब से खाना , खाना होगा। आज हमारा ध्यान केवल फास्ट फूड, जंक फूड जैसे खाद्य पदार्थों (Food) की ओर भागता है जो हमें केवल स्वाद देता है लेकिन हमारे शरीर के लिए बिल्कुल फायदेमंद नहीं होता है, न ही हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखने में इसका कोई योगदान है, तो जब हमारे शरीर को सही मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलेंगे , तो हमारी प्रतिरक्षा मजबूत नहीं रहेगी और हम बीमारी से भी नहीं बच पाएंगे।

पहले के लोगों में यही था की वह अच्छा और सेहतमंद खाना खाते थे, खाने के बाद ढेर सारा काम करते थे जिसकी वजह से खाना भी अच्छे से पच जाता था और शरीर से हानिकारक तत्व भी बाहर हो जाते थे जिसकी वजह से बीमारियाँ काफी काम होती थी। इसलिए प्रतिरक्षा प्रणाली (Defense system) इतनी मजबूत होनी चाहिए की बीमारी खुद-ब-खुद हार जाए।

दवाइयों का उपयोग सोच-समझ कर करें, इंटरनेट से देख कर या किसी भी व्यक्ति के बोलने से दवाइयाँ ना लें। हमारा शरीर हमें हर बीमारी के पहले कुछ संकेत देता है, उसे पहचाने और अगर कोई समस्या 2 से 3 दिन में अगर ठीक नहीं होती है, और बहुत ज्यादा बढ़ती ही जा रही तब ही दवाइयों का सेवन करे वह भी किसी डॉक्टर या फार्मसिस्ट की सलाह से। खुद से कोई भी दवाई लेने और मन मर्जी दवाई लेने से बचें। अगर आप ऐसा करते हैं तो आप एक तो दवाई पर निर्भर (Depend) हो ही जाएंगे साथ ही आप बीमारी को ठीक करने की जगह खुद ही बढ़ावा देंगे। आपकी सुरक्षा आपके ही हाथों में हैं, स्वस्थ और संतुलित जीवन जियेँ।

 

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